थप्पड़ कांडः खालसा स्कूल की शिक्षिका ने छात्र को पीटा, कान की नसें डैमेज – परिजन पहुंचे स्कूल, बर्खास्तगी की मांग

शशिकांत सनसनी छत्तीसगढ़
शिक्षा का मंदिर कहे जाने वाले स्कूलों में जब शिक्षक ही हिंसा पर उतर आएं, तो पूरा तंत्र सवालों के घेरे में आ जाता है। डोंगरगढ़ के खालसा पब्लिक स्कूल में कक्षा 7वीं के छात्र सार्थक सहारे के साथ हुई मारपीट ने पूरे जिले में आक्रोश फैला दिया है।
📅 2 जुलाई की घटना – किताब न निकालने पर 13 वर्षीय छात्र को शिक्षिका ने पीटा
मामला उस समय तूल पकड़ गया, जब सामाजिक विज्ञान की शिक्षिका द्वारा छात्र सार्थक को 3–4 थप्पड़ मारे जाने के बाद, उसके कानों की नसें क्षतिग्रस्त हो गईं।
परिजनों के अनुसार, छात्र ने शिक्षिका की बात स्पष्ट रूप से न सुन पाने के कारण दोबारा प्रश्न पूछा था, जो शिक्षिका को बुरा लग गया और उसने छात्र पर हाथ उठा दिया।
🏥 मेडिकल रिपोर्ट में बड़ा खुलासा – सुनने की क्षमता घटी
डॉक्टरों की रिपोर्ट के अनुसार, थप्पड़ों से कानों की नसों पर गंभीर असर पड़ा है।
ऑडियोग्राम रिपोर्ट में सुनने की क्षमता कमजोर पाई गई है।
छात्र को ऑक्सीजन थेरेपी (HBOT) और स्टेरॉइड ट्रीटमेंट दिया जा रहा है।
परिवार को हर दिन इलाज में लगभग ₹2500 का खर्च उठाना पड़ रहा है।
परिजन हर 4 दिन में रायपुर इलाज के लिए ले जा रहे हैं। छात्र फिलहाल घर पर है लेकिन स्थायी नुकसान की आशंका बनी हुई है।
👨‍👩‍👦 परिजनों की नाराजगी – स्कूल पहुंचे, तीन प्रमुख मांगें रखीं
घटना के बाद छात्र के परिजन व समाजजनों ने स्कूल प्रबंधन से बैठक की, जिसमें तीन प्रमुख मांगे रखी गईं:

  1. इलाज का पूरा खर्च स्कूल उठाए
  2. शिक्षिका को तत्काल सस्पेंड किया जाए
  3. शिक्षिका को पूर्णतः बर्खास्त किया जाए 🚫 (जांच रिपोर्ट आने तक स्थगित)
    स्कूल प्रबंधन ने पहली दो मांगों को स्वीकार कर लिया है, लेकिन तीसरी मांग यानी बर्खास्तगी पर कहा गया है कि शिक्षा विभाग की जांच रिपोर्ट के बाद निर्णय लिया जाएगा।
    🔍 जांच टीम गठित, शिक्षिका को नोटिस व निलंबन
    शिक्षा विभाग ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच टीम गठित कर दी है।
    स्कूल प्रबंधन ने शिक्षिका को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए निलंबित कर दिया है।
    ❗ सवाल उठता है…
    क्या सार्थक को मिलेगा पूरा न्याय?
    क्या सिर्फ निलंबन पर्याप्त है, जब शारीरिक क्षति हो चुकी है?
    क्या स्कूलों में शिक्षक प्रशिक्षण और व्यवहारात्मक मूल्य फिर से देखने की ज़रूरत नहीं?