फर्जी भुगतान कांड: लिपिक हटाया, सीईओ को अभयदान! छोटे कर्मचारी निलंबित, बड़े अधिकारी सुरक्षित – प्रशासनिक निष्पक्षता पर गहराया संदेह

शशिकांत सनसनी छत्तीसगढ़

छुईखदान जनपद पंचायत में करोड़ों रुपये के 15वें वित्त आयोग फर्जी भुगतान घोटाले की आंच अब पूरे जिला प्रशासन को जला रही है। महीने भर से मीडिया की सुर्खियों में बना यह मामला अब ‘बलि के बकरे’ बनाम ‘बचाए गए बड़ों’ की मिसाल बनता जा रहा है।
लिपिक पर कार्रवाई, लेकिन सीईओ अब भी पदस्थ!
8 जुलाई को जिला पंचायत द्वारा जारी आदेश में लिकेश तिवारी (सहायक ग्रेड-2) को उनके 15वें वित्त शाखा प्रभारी के पद से हटा दिया गया है। लेकिन जिस सीईओ और एडीओ की निगरानी में करोड़ों की गड़बड़ियां हुईं, उन्हें न तो हटाया गया, न ही उनके विरुद्ध कोई स्वतंत्र जांच घोषित की गई।
सूत्रों के अनुसार, लिपिक से दबाव में बयान दिलवाया गया कि भुगतान उनके स्तर पर हुआ और उच्च अधिकारियों को जानकारी नहीं थी। सीईओ स्वयं ही जांच अधिकारी बन गए और अब खुद को क्लीन चिट देने की कोशिश कर रहे हैं – यह नैतिकता और कानून दोनों की खिल्ली उड़ाने जैसा है।

65 बिल, 17 वेंडर – बिना पंचायत की जानकारी सीधे भुगतान!
3 जुलाई की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि जनपद से 65 बिलों के माध्यम से 17 वेंडरों को लाखों रुपये सीधे ट्रांसफर कर दिए गए।
कई वेंडरों ने कभी संबंधित पंचायतों के नाम तक नहीं सुने थे।
फर्जी सहमति पत्रों पर सरपंच और सचिव से हस्ताक्षर करवाए गए।
अधिकांश कार्य केवल कागजों पर किए गए दिखाए गए।
डिजिटल हस्ताक्षरों का दुरुपयोग हुआ, और कार्यस्थल निरीक्षण की प्रक्रिया पूरी तरह नजरअंदाज की गई।
यह पूरा खेल पूर्व-नियोजित और सुनियोजित प्रतीत होता है, लेकिन जांच की परिधि सिर्फ एक लिपिक तक सीमित रखी गई है।

क्या राजनीतिक दबाव में जांच हो रही है?

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, कुछ प्रभावशाली जनप्रतिनिधि और अधिकारी आपस में मिलकर उच्च स्तर के दोषियों को बचाने की कोशिश में लगे हैं। यही कारण है कि अब तक की कार्रवाई केवल सतही और प्रतीकात्मक नजर आ रही है।
यदि प्रशासन वास्तव में ईमानदारी से दोषियों पर कार्रवाई करता, तो सीईओ को तत्काल पद से हटाकर स्वतंत्र एजेंसी से जांच करवाई जाती। लेकिन यहां सीईओ ही खुद के “जांचकर्ता” बन बैठे हैं।

❓ अब सवाल उठता है:

क्या राजनांदगांव प्रशासन का न्याय केवल छोटे कर्मचारियों तक सीमित है?
क्या ‘नैतिक जिम्मेदारी’ अब सिर्फ फाइलों की बात बन चुकी है?
क्या यह घोटाला भी किसी ‘ड्रामा’ की तरह लीपापोती में दबा दिया जाएगा?

जनता अब यह सब देख रही है, और अगर न्याय नहीं हुआ, तो जनता की अदालत में इस प्रशासन की जवाबदेही तय होगी।