



शिक्षा विभाग- श्रृंखला आठ
रिपोर्टर -शशिकांत सनसनी छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ में फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र के आधार पर सरकारी नौकरी प्राप्त करने वालों पर जहां प्रदेशभर में कार्रवाई हो रही है, वहीं राजनांदगांव में शिक्षा विभाग की कथित मेहरबानी से एक सहायक शिक्षक की बिना दिव्यांगता की पुष्टि के बहाली का मामला तूल पकड़ता जा रहा है।
फर्जी प्रमाण पर नौकरी का आरोप
छत्तीसगढ़ पैरेंट्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिस्टोफर पॉल, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष प्रेम नारायण वर्मा और छत्तीसगढ़ दिव्यांग सेवा संघ के प्रतिनिधियों ने एक वर्ष से सहायक शिक्षक विकास लाटा के दिव्यांगता प्रमाण पत्र की सत्यता की मांग की है। उनका आरोप है कि विकास लाटा ने फर्जी दिव्यांगता प्रमाण पत्र के आधार पर दिव्यांग कोटे से नौकरी हासिल की है।
जांच के आदेश को किया गया दरकिनार
शिकायतकर्ताओं के अनुसार तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी अभय जायसवाल ने दिनांक 02/08/2024 को विकास लाटा को निलंबित कर रायपुर मेडिकल बोर्ड से ऑडियोलॉजिकल जांच का आदेश दिया था। लेकिन न जांच कराई गई, न रिपोर्ट आई। इसके विपरीत उसे बहाल कर प्राथमिक शाला ठेकवा में पदस्थ कर दिया गया और निलंबन अवधि को सेवा में जोड़ लिया गया।
दो प्रमाण पत्र, एक व्यक्ति — जांच की मांग
क्रिस्टोफर पॉल ने बताया कि विकास लाटा के पास दो अलग-अलग दिव्यांगता प्रमाण पत्र हैं, जो संदेह के घेरे में हैं। उन्होंने नवीन लोक शिक्षण संचालनालय, नवा रायपुर को सभी दस्तावेज भेजकर राज्य मेडिकल बोर्ड से पुनः ऑडियोलॉजिकल जांच कराने और दोष सिद्ध होने पर शिक्षक को बर्खास्त करने की मांग की है।
प्रदेशभर में 150 से अधिक फर्जी मामलों की पहचान
छत्तीसगढ़ दिव्यांग सेवा संघ के बोधित राम चंद्रवंशी, डोमन बया (सर्व दिव्यांग संघ), ईश्वर छटा (छत्तीसगढ़ विकलांग मंच), सविता निषाद (उन्नति दिव्यांग संघ), ऋषि मिश्रा (राष्ट्रीय विकलांग अधिकार मंच) और शशि कुमार देवांगन (अखिल भारतीय विधवा दिव्यांग संघ) सहित कई संगठनों ने अब तक 150 से अधिक ऐसे फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र धारकों की पहचान की है जो सरकारी नौकरी में कार्यरत हैं।
हाई कोर्ट का आदेश भी बेअसर
इन संगठनों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसके बाद कोर्ट ने फर्जी प्रमाण पत्र धारकों की मेडिकल जांच का आदेश दिया था। बावजूद इसके, रायपुर मेडिकल अस्पताल में आज तक जांच नहीं कराई गई है। आरोप है कि आरोपी मोटी रकम देकर जांच से बच रहे हैं और असली दिव्यांगों का हक छीन रहे हैं।
प्रशासन पर सवाल
संगठनों ने आरोप लगाया है कि प्रशासन इन मामलों में पूरी तरह मौन है। अब स्थिति यह हो गई है कि जो सही में दिव्यांग हैं, वे हाशिए पर हैं, और जो पूरी तरह सक्षम हैं, वे प्रमाण पत्र लेकर लाभ उठा रहे हैं। इससे शासन-प्रशासन की साख पर भी प्रश्नचिन्ह लग रहा है।
👉 यह खबर शासन की संवेदनशीलता और जवाबदेही पर एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा करती है। देखना होगा कि प्रशासन अब इस दिशा में कोई ठोस कार्रवाई करता है या नहीं।