फर्जी भुगतान घोटाला: सीईओ को बचाने की कोशिशें तेज, लिपिक और ऑपरेटर बलि का बकरा?छुईखदान जनपद पंचायत में करोड़ों की गड़बड़ी, डीएससी दुरुपयोग से लेकर बैकडेट सहमति तक का खुलासा

राजनांदगांव जिले के छुईखदान जनपद पंचायत में सामने आए करोड़ों रुपए के फर्जी भुगतान घोटाले ने प्रशासनिक कार्यप्रणाली और पारदर्शिता पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। अब इस घोटाले की लीपापोती की कवायदें भी खुलकर सामने आने लगी हैं।

🔍 65 फर्जी बिल, 17 वेंडरों को करोड़ों का भुगतान

जांच में सामने आया कि 65 फर्जी बिलों के माध्यम से 17 वेंडरों को करोड़ों रुपए का भुगतान किया गया। यह भुगतान पंचायतों की अनुमति के बगैर, सीधे जनपद स्तर पर किया गया।

🎯 लिपिक लिकेश तिवारी पर कार्रवाई की तैयारी, सीईओ को बचाने की कवायद

सूत्रों के अनुसार, घोटाले में प्रथम दृष्टया लिपिक लिकेश तिवारी को दोषी ठहराते हुए निलंबन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। जबकि भुगतान प्रक्रिया में तत्कालीन सीईओ रवि कुमार की डिजिटल सिग्नेचर (DSC) का उपयोग हुआ है, जिन्हें बचाने के लिए प्रशासनिक और राजनीतिक प्रयास किए जा रहे हैं।

📄 सीईओ खुद बने जांच अधिकारी, पक्ष में रिपोर्ट तैयार

सबसे बड़ा सवाल तब खड़ा हुआ जब सामने आया कि सीईओ रवि कुमार ने स्वयं को जांच अधिकारी घोषित कर लिया और ऑपरेटरों व लिपिक के बयान दर्ज कर अपने पक्ष में रिपोर्ट बना डाली। यह प्रक्रिया पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाती है।

📘 सीईओ की भूमिका सिर्फ दस्तखत तक सीमित नहीं!

भुगतान, कैशबुक एंट्री, गोश्वारा, मदवार खर्च—इन सभी कार्यों में सीईओ की भूमिका महत्वपूर्ण रहती है। सिर्फ डिजिटल सिग्नेचर देने से यह दावा करना कि उन्हें जानकारी नहीं थी, प्रशासनिक प्रक्रिया की समझ का अपमान प्रतीत होता है।

🕵️‍♂️ बैकडेट में सहमति पत्र और दबाव की राजनीति

सूत्र बताते हैं कि पंचायत सचिवों और सरपंचों पर दबाव बनाकर पुरानी तिथियों में सहमति पत्र तैयार कराए जा रहे हैं। कैशबुक में भी बैकडेट एंट्री करवाकर पूरे घोटाले को वैध दिखाने की कोशिश हो रही है।

🧑‍💼 सचिवों को नहीं थी कोई जानकारी

ग्राम पंचायत संबलपुर और सिलपट्टी के सचिवों ने साफ कहा कि उन्हें भुगतान की जानकारी बाद में मिली, और पैसे सीधे वेंडरों को भेजे गए। इससे यह स्पष्ट होता है कि जनपद स्तर पर पंचायतों को अंधेरे में रखकर गबन किया गया।

🧾 राजनीतिक हस्तक्षेप भी आया सामने

स्थानीय नेताओं के हस्तक्षेप की बात भी सामने आई है, जो सचिवों और सरपंचों से सहमति पत्र लेने के लिए दबाव बना रहे हैं। वहीं, चार ऑपरेटर, जिन्हें हटाया गया, अब नेताओं के संरक्षण में बताए जा रहे हैं।

छुईखदान जनपद पंचायत में हुए इस फर्जी भुगतान प्रकरण में यदि निष्पक्ष जांच नहीं हुई तो छोटे कर्मचारी बलि के बकरे बनेंगे और असली गुनहगार साफ बच निकलेंगे। प्रशासनिक ईमानदारी और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र एजेंसी से जांच की मांग अब तेज हो सकती है।