✍️ लाल टोपी राजू सोनी
आज गांधी चौक में एक ऐसे सिरफिरे से सामना हो गया जिसे सहन करना किसी तपस्या से कम नहीं था। बातें कुछ यूं कर रहा था, मानो ब्रह्मा जी ने अपने सारे गुण एक ही प्राणी में डाल दिए हों — और वो भी ग़लती से।
मैं इधर-उधर जान-पहचान वाले को ढूंढ रहा था, कोई तो आए और मुझे इस सिरफिरे के प्रवचनों से मुक्ति दिलाए। लेकिन साहब, कुछ बातें ऐसी भी थी जो काबिले-गौर थीं, और कुछ ऐसी जो सीधे सिर के ऊपर से निकल गईं।
बात शुरू हुई मनमोहन सिंह से — “सरकार चला रहे थे बढ़िया से, लेकिन राहुल बाबा ने आदेश फाड़ दिए। वहीं से नरेंद्र मोदी का अवतार हुआ।”
मैंने सोचा — घर का भेदी लंका ढाए!
उसने बताया कपिल सिब्बल की मनमानी, मनमोहन की खामोशी, स्मृति ईरानी का सिलेंडर और रामदेव बाबा का वो योग जिसमें अंतड़ियाँ दिखाकर 15 लाख का वादा करवा दिया गया। फिर नरेंद्र मोदी का पाकिस्तान को नेस्तनाबूद करने का जुनून, “राम मंदिर वहीं बनाएंगे” का नारा, योगी जी की एंट्री, “मैं चौकीदार” की हुंकार, कुंभ का दृश्य, पहलगांव से माना मंदिर तक की यात्रा — इतनी कहानियाँ सुना दीं कि दिमाग का ट्रांसफार्मर उड़ गया।
अब आते हैं मुद्दे की जड़ पर — सिरफिरा बोला, “सायं सायं की सरकार फिर राजनांदगांव आई है। डॉ. रमन सिंह आए हैं, तो बिजली जाएगी ही।”
यह सुनते ही मुझे बचपन की वो पहेलियाँ याद आ गईं, जिनका हल खुद पहेली से बड़ा संकट होता था।
लेकिन यह बात एकदम सच लगी — जैसे ही रमन सिंह जी शहर में गहरी नींद में गए, शहर में लाईट आ गई।
सवाल उठता है — क्या खनिज विभाग के बाद अब बिजली विभाग भी किसी साजिश का हिस्सा है? क्या विधानसभा अध्यक्ष के शहर में भी ये ‘अघोषित अंधेरा’ योजना का हिस्सा है?
जब रमन सिंह मुख्यमंत्री थे, तो मुश्किल से दस मिनट बिजली जाती थी। अब बिजली चार-चार घंटे ग़ायब!
राजनांदगांव अब मोहला-मानपुर बनता जा रहा है।
सिरफिरा तो चला गया, लेकिन जाते-जाते यह सवाल छोड़ गया —
सरप्लस बिजली वाला प्रदेश, हर बार रमन सिंह के आगमन पर अंधेरे में क्यों डूब जाता है