रायपुर

पत्रकार हत्या मामले में साय सरकार ने लाइसेंस किया निरस्त, भ्रष्टाचार के सिंडिकेट पर भी नज़र!
छत्तीसगढ़ की से सरकार ने पत्रकार मुकेश चंद्राकर मामले में बड़ी कार्रवाई की है. लोकनिर्माण विभाग ने हत्या के आरोपी ठेकेदार सुरेश चंद्राकर के पंजीयन को निरस्त कर दिया है. ऐसा बताया जा रहा है कि अब वर्तमान उसके सभी ठेके भी निरस्त हो जाएंगे. आपको बतादें की पत्रकार मुकेश चंद्राकर ने बीजापुर के जिस सड़क पर भ्रष्टाचार का खुलासा किया था. उसकी कई और परतें खुलनी बाकी थी. जिससे बस्तर में चल रहे ठेका टेंडर के भ्रष्टाचार में लिप्त एक बड़े सिंडिकेट का पर्दाफाश हो सकता था. स्थानीय पत्रकार आज भी लगातार सरकार के द्वारा किए जा रहे एक्शन को लेकर एक तरफ जहां आश्वस्त हैं, तो वहीं दूसरी तरफ उन्हें इस नेक्सस के खात्मे का भी इंतजार है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक आरोपी सुरेश चंद्राकर के फार्म से बीजापुर में ही 3 सड़कों का निर्माण चल रहा था. जिसमें नेलसनार से गंगालूर के बीच 32 किलोमीटर तू लेन रोड, जैगर से तुमनार के बीच करीब 12 किलोमीटर और कुटरू से फरसेगढ़ के बीच करीब 13 किलोमीटर की सड़क चौड़ीकरण और मरम्मत का काम शामिल है. इनमें नेलसनार से गंगालूर सड़क का काम करीब 73 करोड़, जैगुर से तुमनार का काम करीब 14 करोड़ और कुटरू से फरसेगढ़ का काम करीब 20 करोड़ रुपयों का है. इनमें से कुछ काम पूरे कर लिए गए हैं और अधिकतर कार्य अभी बाकी हैं. ऐसे में सरकार के फैसले के बाद माना जा रहा है कि आरोपी के फार्म से संबंधित ठेके निरस्त और सभी कार्य रोक दिया जाएगा.
पत्रकार मुकेश चंद्राकर के केस में पुलिस की कार्रवाई पर भी लोग सवाल उठा रहे हैं. आरोप है कि बस्तर में लंबे समय से पदस्थ अधिकारी और कर्मचारियों के भ्रष्टाचार करने वाले सिंडिकेट पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है. सवाल इसपर भी उठ रहे हैं कि भ्रष्टाचार में संलिप्त कई अधिकारियों और कर्मचारियों के सिंडिकेट का भी मुकेश पर्दाफाश करने वाले थे, जिसकी वजह से उसकी हत्या के पीछे प्रशासनिक माफियाओं का भी हाथ हो सकता है. बस्तर नक्सल प्रभावित इलाका होने के कारण अक्सर ही ऐसे सड़क पुल पुलिया आदि के निर्माण की लागत बढ़ती रहती है. प्रशासनिक आतंक का सबसे बड़ा खेल बस्तर में नक्सलियों के खौफ की आड़ में खेल जाता है. कहा यह भी जाता है कि इस खेल में ठेकेदार, प्रशासनिक अधिकारी का हिस्सा तो होता ही है साथ ही नक्सलियों तक पैसे भी इसी सिंडिकेट से पहुंचता है. नक्सलियों द्वारा ठेकेदारों से वसूली की कई घटनाएं सामने आई है. इसी का फायद उठा कर पहले ठेकेदार टेंडर की राशि को 2 से अधिक बार भी बढ़ाने की मांग करते हैं. अधिकारी भी भ्रष्टाचार के इस खेल में सबसे बड़े खिलाड़ी होते हैं. वे बड़ी आसानी से इसे पास कर अपना हिस्सा घटक जाते हैं. अब जरा सोचिए कैसे बीते 15 साल में एक मामूली सा नौकरी करने वाला लड़का सैकड़ों करोड़ का आसामी बन जाता है. ऐसे कई ठेकेदार बस्तर में काम कर रहे और अब तक हजारों करोड़ के ऐसे कई टेंडर ठेके के खेल में अधिकारियों ने भी कितना अकूत धन अर्जित कर लिया होगा. केवल एक मुकेश ने जब सरकार के जीरो टॉलरेंस की नीति को धता बता रहे अधिकारियों के सिंडिकेट की पोल खोलनी चाहिए तो इसे जान से हाथ धोना पड़ा. डिप्टी सीएम अरुण साव ने 25 दिसंबर को भ्रष्टाचार की जांच के लिए कमिटी बनाई थी. जिसके बाद ही मुकेश की बेरहमी से हत्या कर दी गई. इस बात की तस्दीक कौन करेगी कि मुकेश कि हत्या अधिकारियों द्वारा उकसाने पर तो नहीं किया गया? कहीं इसमें दोषी अधिकारियों को बचाने की साजिश तो नहीं की जा रही.
भ्रष्टाचार के सिंडिकेट में शामिल हैं कई बड़े अधिकारी!
बताया जाता है कि बस्तर में सिंडिकेट के भ्रष्टाचार का फैला जाल इतना विशाल और मजबूत है कि वहां पदस्थ आईपीएस और आईएस स्तर के अधिकारी भी उनके खिलाफ कोई भी एक्शन नहीं ले पाते. इसकी सबसे बड़ी वजह बताई जाती है कि जहां अन्य राज्यों में सड़क या अन्य निर्माण का ठेका जिस कीमत पर बनाई जाती है वह अकेले बस्तर में ही कई गुनी अधिक कीमत वसूली जाती है. इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि कोई सड़क अन्य राज्यों में 20 लाख की बनती है तो उसी सड़क को बस्तर में 80 लाख से 1 करोड़ तक कीमत वसूली जाती है. यह सिर्फ इस लिए क्योंकि बस्तर नक्सल प्रभावित इलाका है. इसी बात का डर अधिकारी और ठेकेदार सरकार को दिखाते हैं कि यहां काम करने की कीमत अधिक देनी होगी. यही वजह है कि जनता के मन में अब सवाल खड़े होने लगे हैं कि जिस बस्तर के विकास को लेकर जनता के लाखों करोड़ रुपए बस्तर में पानी की तरह बहाए जाते हैं उनमें से ज्यादातर हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट तो नहीं चढ़ता. सरकार भी चाहती है कि भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म किया जाए. लेकिन यह प्रशासनिक अधिकारी कर्मचारी और ठेकेदारों का सिंडिकेट ही है जो आदिवासियों के विकास के नाम पर अपनी जेबें गरम कर रहे हैं.