हरे सोना घोटाले मामले में 10 लोग जायेंगे जेल, एक रेंजर, एक डीप्ती रेंजर सहित 10 पर हुआ एफआईआर

शशिकांत सनसनी राजनांदगाँव छत्तीसगढ़
तेंदूपत्ता घोटाले पर अब भी खामोश हैं जिम्मेदार — जांच की फाइलें चल रही हैं, धीमी, 10 लोगों पर हुई हैँ एफआईआर,

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में तेंदूपत्ता घोटाले की जांच धीमी रफ्तार से चल रही है, और इस देरी पर अब सवाल उठने लगे हैं। लाखों रुपये के इस घोटाले में 10 लोगों पर एफआईआर दर्ज होने के बावजूद आरोपी खुलेआम गोदामों में घूम रहे हैं। उधर, जिम्मेदार अधिकारी या तो “मीटिंग में व्यस्त” हैं, या फिर “बयान देने की स्थिति में नहीं”।
वहीँ पुलिस अभी तक गिरफ्तार नहीं कर पाई हैँ और एक कर्मचारी जमानत ले लिया हैँ- गौरतलब है कि इस घोटाले में 10 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। लेकिन एक सप्ताह से अधिक समय बीतने के बाद भी न तो किसी की गिरफ्तारी हुई, न कोई निलंबन, और न ही किसी गोदाम पर प्रशासनिक निगरानी का आदेश जारी किया गया। एफआईआर में नामजद तीन कर्मचारी आज भी उसी गोदाम में कार्यरत हैं, मानो कुछ हुआ ही न हो।

पुलिस का बयान — जांच ‘प्रक्रिया में’

जब इस मामले में नगर पुलिस अधीक्षक से जानकारी मांगी गई, तो उन्होंने कहा:

“फाइल अभी हमारे पास पहुँची है। हम एक सप्ताह के भीतर सभी आरोपियों के विरुद्ध कार्रवाई करेंगे।”

इस बयान के बाद यह सवाल खड़ा हो रहा है — क्या एफआईआर के बाद भी फाइलें ‘डाकघर की कबूतर नीति’ से चलती हैं?
या फिर पुलिस और वन विभाग के बीच जांच को धीमा करने की अदृश्य सहमति बन चुकी है?

पुष्पेंद्र नायक, नगर पुलिस अधीक्षक राजनांदगाँव

वन विभाग की चुप्पी और संदेह

वन विभाग के डीएफओ रतन कुमार गजभिए की चुप्पी अब लोगों के बीच चर्चा का विषय बन चुकी है। आरोप लग रहे हैं कि विभाग खुद ही दोषियों को संरक्षण दे रहा है और जांच को जानबूझकर धीमा किया जा रहा है ताकि सबूतों को मिटाया जा सके।

प्रशासन पर उठते सवाल:
क्या तेंदूपत्ता गोदाम सरकारी संपत्ति है या किसी ठेकेदार समूह की निजी जागीर बन चुका है?
एफआईआर के बाद भी जब आरोपी कर्मचारी पद पर बने हुए हैं, तो क्या यह कानून का मखौल नहीं?
क्या सरकार केवल पंचांग और पोस्टर तक सीमित रह गई है, और प्रशासन सिर्फ फाइलों तक?

जनता की मांगें
स्थानीय जनप्रतिनिधियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों ने शासन से मांग की है:

  1. एफआईआर में नामित सभी कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाए।
  2. संबंधित गोदामों को प्रशासनिक निगरानी में लेकर सील किया जाए।
  3. मामले की स्वतंत्र एजेंसी से जांच करवाई जाए ताकि वन विभाग की भूमिका भी जांच के दायरे में आ सके।
    अंत में, जनता पूछ रही है:

“कब तक हरे जंगल के नाम पर भ्रष्टाचार का यह सूखा चलता रहेगा?”
“क्या तेंदूपत्ता की हर पत्ती अब हमें घोटाले की गवाही देती रहेगी?”