राजनांदगांव ज़मीन विवाद भड़का: “विदेश में हैं तो क्या हक नहीं?” –जोहेल परिवार की ललकार, प्रशासन की चुप्पी संदेहजनक!

राजनांदगांव
रेवाड़ीह वार्ड में ज़मीन के सीमांकन और जमीन का नक्शा काटने को लेकर उठा विवाद अब तूल पकड़ता जा रहा है। विदेश (कनाडा) में रह रहे ज़मीन के सहहिस्सेदार बलवंत सिंह जोहेल और उनके परिवार की अनुपस्थिति में तहसील द्वारा जबरन की जा रही सीमांकन की कार्रवाई ने पूरे मामले को गरमा दिया है।

“क्या विदेश में रहने से अधिकार खत्म हो जाते हैं?” – पीड़ित परिवार की ललकार
जोहेल परिवार का कहना है कि वे ज़मीन के बंटवारे से इनकार नहीं कर रहे, लेकिन पूरी प्रक्रिया पारदर्शी और न्यायसंगत होनी चाहिए। उनका कहना है – “हम अपनी ज़मीन से भागे नहीं हैं, बल्कि विदेश से भी उसका हक बचा रहे हैं।”

नोटरी आपत्ति पत्र की भी अनदेखी?
सबसे गंभीर सवाल यह है कि कनाडा से भेजे गए नोटरीकृत आपत्ति पत्र को कलेक्टर और विभागीय अधिकारियों को विधिवत प्रेषित करने के बावजूद, ज़मीन का सीमांकन और खसरे का नक्शा क्यों काटा जा रहा है?
परिवार का आरोप है – “हमने विधिसम्मत तरीके से आपत्ति दर्ज कराई है, फिर भी प्रशासन गूंगा-बहरा बना हुआ है। यह सीधा अधिकारों का हनन है।”

“नक्शा काटना पूरी तरह ग़ैरकानूनी” – परिवार का आरोप
जोहेल परिवार ने कहा है कि ज़मीन का खसरा नक्शा गलत तरीके से काटा जा रहा है, जबकि सभी हिस्सेदार मौके पर उपस्थित नहीं हैं। उनका कहना है – “जब तक सभी हिस्सेदारों की उपस्थिति और लिखित सहमति नहीं होती, तब तक इस तरह की कोई कार्रवाई न केवल ग़लत है, बल्कि गैरकानूनी भी है।”
प्रशासन की चुप्पी पर सवाल
जब “कलयुग के भारत” की टीम ने इस मामले में प्रशासनिक पक्ष जानने की कोशिश की, तो अधिकारी वही घिसा-पिटा जवाब दोहराते नजर आए – “सब कुछ नियमों के अंतर्गत हो रहा है।”
अगर सब कुछ नियमों के अनुसार है, तो नोटरीकृत आपत्ति को नजरअंदाज करने का अधिकार किसे दिया गया? क्या इस चुप्पी के पीछे कोई दबाव या मिलीभगत है?
“न्याय नहीं मिला तो आंदोलन होगा – और जोरदार होगा!”
बलवंत सिंह जोहेल ने कनाडा से भेजे गए वीडियो संदेश में चेतावनी दी है कि यदि दिसंबर 2025 तक उन्हें न्याय नहीं मिला, तो वे भारत लौटकर ज़िला प्रशासन के खिलाफ ज़ोरदार जनआंदोलन खड़ा करेंगे।
उनके शब्दों में – “यह लड़ाई सिर्फ ज़मीन की नहीं, बल्कि आत्म-सम्मान और न्याय के लिए है। हम चुप नहीं बैठेंगे।”
कानून को दरकिनार कर रही तहसील?
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय भू-राजस्व संहिता के अनुसार, किसी भी सीमांकन या जमीन मे कोई है तो कार्रवाई के लिए सभी हिस्सेदारों की सहमति या न्यायालय का आदेश अनिवार्य है। ऐसी स्थिति में तहसील की यह कार्रवाई न सिर्फ गलत है, बल्कि कानून का स्पष्ट उल्लंघन भी प्रतीत होती है।
अब असली सवाल यह है:
क्या राजनांदगांव का प्रशासन कानून की किताब के पन्ने पलटेगा, या जनता के भरोसे की लकीर मिटा देगा?
क्या जोहेल परिवार की आवाज़ ज़िला मुख्यालय से टकराकर लौटेगी, या न्यायालय की चौखट पर इन्साफ की दस्तक देगी?