₹3200 करोड़ का शराब घोटाला:बलि चढ़े छोटे अधिकारी, मास्टरमाइंड अब भी ‘अछूता’! भूपेश कृपा या सिस्टम की चुप्पी?

₹3200 करोड़ का शराब घोटाला:
बलि चढ़े छोटे अधिकारी, मास्टरमाइंड अब भी ‘अछूता’! भूपेश कृपा या सिस्टम की चुप्पी?

🖊 शशिकांत सनसनी रायपुर

छत्तीसगढ़ में चर्चित ₹3200 करोड़ के शराब घोटाले ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है — क्या बड़े अधिकारी और सत्ता के करीबियों को राजनीतिक ‘संरक्षण’ प्राप्त है?

जहां ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) और ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा) की प्रारंभिक जांच में कुछ नाम प्रमुखता से सामने आए, वही नाम चार्जशीट दाखिल होते ही रहस्यमयी तरीके से गायब हो गए। इस मामले का सबसे अहम किरदार माना जा रहा है — तत्कालीन आबकारी अपर आयुक्त आशीष श्रीवास्तव, जिनका अब तक न पूछताछ हुई, न गिरफ्तारी।

💼 ‘फ्लाइंग स्क्वॉड’ का प्रमुख, फिर भी बेकसूर?
आशीष श्रीवास्तव राज्य स्तरीय फ्लाइंग स्क्वॉड और होलोग्राम निगरानी तंत्र के प्रभारी थे। उनकी सीधी जिम्मेदारी थी —
शराब दुकानों की जांच
अनियमितताओं की निगरानी,
अवैध बिक्री पर नियंत्रण
फिर भी जांच एजेंसियों की चार्जशीट में उनका नाम गायब है। सवाल यह है कि —

किसके दबाव में हटाया गया नाम?
क्या यह भूपेश बघेल सरकार की ‘कृपा’ का परिणाम है?

🔍 ‘बी-पार्ट स्कीम’ से अरबों की अवैध कमाई

जांच में खुलासा हुआ है कि प्रदेश में एक समानांतर अवैध व्यवस्था ‘बी-पार्ट’ स्कीम के नाम पर चलाई जा रही थी। इसमें:

हर पेटी शराब पर नकद वसूली

देसी शराब से अकेले ₹2174 करोड़ की अवैध कमाई

जिलों से रकम ऊपर तक पहुंचाई जाती थी

इस योजना का संचालन जिलों के अफसर, सेल्समैन और एजेंटों के माध्यम से किया गया। मगर कार्रवाई केवल निचले स्तर के अफसरों पर की गई। ऊपरी स्तर के मॉनिटरिंग अधिकारी और उनके राजनीतिक आका अब भी बाहर हैं।
🤝 भूपेश सरकार के ‘करीबी’ अफसरों से सेटिंग?

सूत्रों का दावा है कि इस पूरे नेटवर्क का संचालन भूपेश बघेल सरकार के खास अधिकारियों की जानकारी में किया गया।

पोस्टिंग से लेकर अवैध वसूली तक, सब सुनियोजित था

राजनीतिक संरक्षण की वजह से ईडी और ईओडब्ल्यू की कार्रवाई सीमित रही

⚠️ जनता का सवाल – क्या न्याय मिलेगा?
यह मामला अब सिर्फ आर्थिक घोटाले तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक ईमानदारी और राजनीतिक निष्पक्षता की भी अग्निपरीक्षा बन चुका है।

यदि ईडी की रिपोर्ट में नाम था, तो चार्जशीट से गायब क्यों?
अगर उड़नदस्ता सब कुछ मॉनिटर कर रहा था, तो वही लोग अब तक क्यों बचे हुए हैं?

छत्तीसगढ़ का यह शराब घोटाला साबित करता है कि जब सत्ता, सिस्टम और संगठित भ्रष्टाचार का गठजोड़ बनता है, तो सच दबाया जा सकता है, लेकिन छिपाया नहीं जा सकता।
अब देखना है कि इस घोटाले का मुख्य सरगना कब सामने आता है — और क्या सिस्टम की चुप्पी टूटेगी?