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डोंगरगढ़ के खालसा पब्लिक स्कूल से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जहां एक 13 वर्षीय छात्र को क्लासरूम में शिक्षिका ने ऐसा थप्पड़ मारा कि उसकी सुनने की शक्ति ही चली गई। घटना ने एक मासूम की ज़िंदगी को पूरी तरह बदलकर रख दिया है।
घटना 2 जुलाई की है। सातवीं कक्षा में पढ़ने वाला सार्थक सहारे एसएसटी की क्लास में था। पढ़ाई के दौरान शिक्षिका ने कुछ कहा, जिसे बच्चा ठीक से नहीं सुन पाया। इसी पर आरोप है कि शिक्षिका प्रियंका सिंह ने गुस्से में आकर इतना जोरदार थप्पड़ मारा कि उसके कान का पर्दा फट गया।
जब सार्थक स्कूल से घर लौटा, तो उसकी पहली बात थी —
🗯️ “मम्मी, कुछ सुनाई नहीं दे रहा…”
परिजनों ने पहले डोंगरगढ़ अस्पताल, फिर राजनांदगांव और आखिरकार रायपुर के निजी अस्पताल तक दौड़ लगाई। लेकिन अब तक सुधार नहीं है। डॉक्टरों ने कहा है — इलाज लंबा चलेगा और सुनने की शक्ति वापस आ भी पाएगी या नहीं, इसकी गारंटी नहीं।
❗ परिजनों का गुस्सा फूटा:
“यह सिर्फ थप्पड़ नहीं था — हमारे बच्चे की पूरी ज़िंदगी बदल गई है।”
स्कूल प्रबंधन ने अब तक सिर्फ शो-कॉज नोटिस देकर औपचारिकता निभाई है।
ना माफ़ी, ना कार्रवाई — बस चुप्पी।
परिजनों ने अब बीईओ बीरेंद्र कौर गरचा को लिखित शिकायत दी है —
🗯️ “हमारे बेटे को न्याय चाहिए। आरोपी शिक्षिका को स्कूल से हटाया जाए।”
बीईओ ने कार्रवाई का आश्वासन तो दिया है, लेकिन अब तक कोई ठोस एक्शन सामने नहीं आया है।
⚖️ सवाल बड़े हैं, जवाब कौन देगा?
क्या क्लासरूम अब बच्चों के लिए डर का घर बन गए हैं?
क्या शिक्षक को ये हक है कि वो इतनी हिंसा करे कि बच्चा जिंदगी भर के लिए प्रभावित हो जाए?
और सबसे अहम — क्या “शिक्षा” के नाम पर ऐसी बेरहमी बर्दाश्त की जानी चाहिए?
सार्थक अब ठीक से सुन नहीं सकता, लेकिन उसकी माँ की आवाज़ गूंज रही है — “हमें इंसाफ चाहिए!”
क्या सिस्टम इस माँ की पुकार सुनेगा, या एक और बच्चा खामोशी में गुम हो जाएगा?
🟥 “एक थप्पड़ ने छीनी मासूम की सुनवाई – अब न्याय की गुहार!”
🟥 “क्लास में मारा गया थप्पड़, जिंदगी भर की सजा बन गया!”