
सूरज साहू धमतरी
छत्तीसगढ़ के धमतरी से एक भावुक कर देने वाली तस्वीर सामने आई है। बरसते पानी में रेनकोट पहनकर एक भाई-बहन कलेक्टर ऑफिस के बाहर इंसाफ की गुहार लगाते नजर आए। अपनी डूबी हुई जमीन के मुआवजे की मांग को लेकर दोनों धरने पर बैठ गए। इस प्रदर्शन से प्रशासन में हड़कंप मच गया और कुछ देर बाद पुलिस ने दोनों को वहां से हटा दिया।
धमतरी के गंगरेल बांध डूब प्रभावितों की कहानी फिर सुर्खियों में है। बांध का निर्माण वर्ष 1975 में हुआ था, जिससे 52 गांव जलमग्न हो गए थे। विस्थापितों को पुनर्वास देने का वादा सरकार ने किया था, लेकिन आज 50 साल बाद भी कई पीड़ितों को जमीन नहीं मिल पाई है। इन्हीं में से एक हैं उमा साहू और उनके भाई रमेश साहू।
उमा और रमेश का दावा है कि उनके परिवार की जमीन गंगरेल बांध में डूब गई थी, लेकिन उन्हें पुनर्वास नीति के तहत जमीन नहीं मिली। थक-हार कर दोनों भाई-बहन धमतरी कलेक्टर दफ्तर के सामने रेनकोट पहनकर धरने पर बैठ गए। उमा ने बताया कि उन्होंने सलोनी गांव में 5-5 एकड़ बंजर जमीन आरक्षित कर धान की फसल बोई थी, लेकिन गांव के सरपंच और कुछ लोगों ने जबरन जमीन से बेदखल कर दिया और जान से मारने की धमकी भी दी।
🎙️ उमा साहू — पीड़ित महिला
🎙️ रमेश साहू — पीड़ित भाई
धरने की सूचना मिलते ही प्रशासन हरकत में आया और रुद्री पुलिस मौके पर पहुंची। दोनों भाई-बहन को वहां से उठाकर थाने ले जाया गया, जहां समझाइश के बाद उन्हें छोड़ दिया गया।
🎙️ रीता यादव — अपर कलेक्टर, धमतरी
“मामला सिविल कोर्ट में विचाराधीन है। जांच में सामने आया है कि ये दोनों डूब प्रभावितों की सूची में नहीं हैं, फिर भी मामले की जांच की जा रही है।”
एक तरफ पीड़ित भाई-बहन डूब प्रभावित होने का दावा कर रहे हैं, वहीं प्रशासन उनकी मान्यता को खारिज कर रहा है। अब देखना होगा कि कोर्ट किसके पक्ष में फैसला सुनाता है। लेकिन सवाल यह है कि जब इंसाफ की उम्मीद टूटने लगे, तो आमजन कहां जाए?