कौन करेगा सेटिंग? गैरकानूनी करने वाले हुए अनाथ!


✍️ लाल टोपी राजू सोनी
स्थान: राजनांदगांव

संस्कारधानी कहलाने वाले राजनांदगांव में अब संस्कार नहीं, सेटिंग का बोलबाला है। चौथे स्तंभ का सहारा लेकर एक अनपढ़-गंवार भी जब खुद को पत्रकार कहने लगे और पूरे सिस्टम को अपने ‘मैनेजमेंट’ से मोहर लगवाने लगे, तो समझिए लोकतंत्र की रीढ़ में दीमक लग चुकी है।

यह बात कोई और नहीं, मनोज चंदेल के नाम से परिचित वो ‘पत्रकार’ है, जो हर चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच कौन कहां किसके साथ जाएगा, यह तय करने में बिचौलिये की भूमिका निभाता रहा है। पर्दाफाश से ज्यादा पर्दा डालना, उसकी विशेषज्ञता रही है। और यही वजह है कि शिवनाथ नदी का चीरहरण खुलेआम चलता रहा — प्रशासन मौन, और खाकी कहीं ‘सिंडिकेट’ के रंग में रंगी दिखाई देती रही।

कबीर जयंती पर उमड़ी भीड़ को भी नजरअंदाज कर, अवैध रेत खनन की साहसी योजना को अंजाम देना शायद सिंडिकेट की ताकत को बयां करता है। मोहड़ गोलीकांड की फायरिंग की आवाजें आज भी ग्रामीणों के ज़हन में गूंज रही हैं, लेकिन असली गुनहगार अब भी बाहर हैं — और अंदर हुए हैं कुछ बली के बकरे।

विधायक घटनास्थल पर पहुंचकर लोगों को हिम्मत दे रहे हैं, लेकिन बीजेपी अब तक अपने ही आरोपी पार्षद पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं कर पाई है। ग्रामीण एसपी से लेकर आईजी तक चक्कर काट रहे हैं, लेकिन पुलिस के हाथ उस पटकथा लेखक तक नहीं पहुंच पाए हैं, जिसने यह रेत-रक्त का ड्रामा लिखा।

क्या पुलिस डर रही है सिंडिकेट से?
या फिर इस रंग में वो खुद ही शामिल है?

कुछ मीडिया संस्थानों ने मनोज चंदेल का नाम छाप कर कानून को एक संकेत जरूर दिया है — लेकिन कानून की आंखें अभी भी वहां तक देख पाने में असमर्थ लग रही हैं। चीनू महाराज के वायरल वीडियो ने पुलिस की साख को पहले ही हिला दिया है, अब सवाल ये है कि क्या यह मामला भी ‘मैनेजमेंट’ की भेंट चढ़ जाएगा?

क्या हाईकोर्ट का हस्तक्षेप आएगा?
या फिर उसी सिंडिकेट से जांच करवाई जाएगी, जो खुद आरोपी है?

और सबसे बड़ा सवाल —
क्या उन चेहरों को भी सज़ा मिलेगी, जिन्होंने डॉक्टर रमन सिंह की राजनीतिक छवि को धूमिल करने का खाका तैयार किया?

संस्कारधानी की परतें खुलनी शुरू हो चुकी हैं,
देखना है कौन बेनकाब होता है और कौन ‘मैनेज’ कर निकल जाता है!