✍️ विशेष रिपोर्ट: शशिकांत सनसनी रायपुर छत्तीसगढ़
📍 घोर नक्सल इलाकों में ‘सूचना का अंधेरा’ बना अफसरों की लूट का हथियार
सुकमा। तेंदूपत्ता संग्राहकों के नाम पर सरकार ने जो करोड़ों का बोनस भेजा, वो आदिवासियों के खाते तक पहुंचा ही नहीं। न उन्हें इसकी खबर थी, न उन्होंने कोई पैसा देखा।
अब ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो) की जांच में खुलासा हुआ है कि यह पूरी राशि फर्जी दस्तावेजों के सहारे अफसरों और समिति प्रबंधकों ने खुद ही हड़प ली।
🔥 4500 पेज की चार्जशीट में हिला देने वाले तथ्य:
साल 2021-22 में तेंदूपत्ता बोनस में हुआ ₹7 करोड़ का घोटाला
डीएफओ अशोक पटेल, 3 अन्य वनकर्मी और 9 समिति प्रबंधक आरोपी
आदिवासी इलाकों – गोलापल्ली, मरईगुड़ा, भेज्जी जैसे गांवों में फर्जीवाड़ा
जिनके नाम से पैसा आया – उन्हें स्कीम का नाम तक नहीं पता!
केवल 8 समितियों की जांच में खुलासा – बाकी 9 की जांच बाकी
🧾 कैसे हुआ घोटाला?
फर्जी हाजिरी और भुगतान सूची तैयार की गई
बैंक खातों में रकम ट्रांसफर दिखा दी गई, जबकि असल खाताधारकों को खबर भी नहीं
क्षेत्र की कमजोर बैंकिंग व्यवस्था और इंटरनेट की अनुपस्थिति का फायदा उठाया
कई आदिवासी अब भी यही कह रहे – “हमें तो योजना का नाम तक नहीं पता”
❗ यह सिर्फ आर्थिक अपराध नहीं – यह व्यवस्थागत लापरवाही और संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है।
क्या सरकार इन आदिवासियों को उनका हक वापस दिला पाएगी?
और क्या बाकी समितियों में भी ऐसे ही सन्नाटा-चोर बाज़ार छिपा है?
⚖️ अब तक क्या कार्रवाई हुई?
ईओडब्ल्यू ने दर्ज किया मामला, जुटाए दस्तावेज
डीएफओ समेत 14 आरोपियों के नाम एफआईआर में शामिल
आरोपियों पर कूटरचना, गबन और आपराधिक साजिश के तहत केस
मामला अब आगे लोक अभियोजन और विभागीय कार्रवाई की ओर
छत्तीसगढ़ के जंगलों में तेंदूपत्ता तोड़ने वाले आदिवासी पसीने से भीगे पत्ते इकट्ठा करते रहे, और राजधानी में बैठकर कुछ अफसर उस पसीने का पैसा हजम करते रहे।
यह घोटाला “न्याय से ज्यादा जरूरी सूचनाओं की पहुंच” का सवाल भी खड़ा करता है।