
रिपोर्ट: अनमोल कुमार | पटना
🔹 बागेश्वर धाम सरकार के धीरेन्द्र शास्त्री बने केंद्रबिंदु
🔹 भगवान परशुराम जन्म महोत्सव के समापन अवसर पर भव्य आयोजन
पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में रविवार को “सनातन महाकुंभ” का भव्य आयोजन हुआ, जिसने पूरे बिहार को भक्ति, राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक चेतना के रंग में रंग दिया। यह आयोजन भगवान परशुराम जन्म महोत्सव के समापन अवसर पर किया गया, जिसमें देशभर से आए संत-महात्मा, विचारक, पीठाधीश्वर और हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने सहभागिता की।
आध्यात्मिकता और राष्ट्रीय चेतना का मिलन
इस विराट आयोजन में बागेश्वर धाम सरकार के पूज्य आचार्य धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री (बाबा बागेश्वर) मुख्य आकर्षण रहे। उन्होंने अपने ओजस्वी वक्तव्य में स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य राजनीति नहीं, “रामनीति” है। उन्होंने कहा—
“बिहार से मेरा आत्मीय रिश्ता है। यह भूमि केवल राजनीति नहीं, नीति, भक्ति और ज्ञान की भूमि है। हमें माता सीता, परशुराम, और नीति शास्त्र बिहार से मिले हैं – इस ऋण को हम जीवन भर नहीं भूल सकते।”
शास्त्री ने यह भी कहा कि “अब समय है कि जातिवाद से ऊपर उठकर पूरे देश को राष्ट्रवाद के मार्ग पर चलना चाहिए।”
तरेत पाली मठ की गौरवगाथा
बाबा बागेश्वर ने अपने संबोधन में एक अहम बात दोहराई—
“जब दुनिया में पहली बार 12 लाख लोग एक साथ कथा सुनने पहुंचे, वह स्थल कोई और नहीं, बिहार का तरेत पाली मठ था।”
जर्मन हैंगर में भक्तों का ऐतिहासिक जमावड़ा
गांधी मैदान में मानसून को देखते हुए विशेष जर्मन हैंगर की व्यवस्था की गई थी, जहां हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति ने आयोजन को ऐतिहासिक बना दिया। कार्यक्रम की शुरुआत सुबह 11 बजे हुई और देर रात तक आध्यात्मिक प्रवचनों, रामकथाओं और भक्ति संगीत की गूंज से माहौल दिव्य बना रहा।
उपस्थित रहे कई विशिष्ट संत-महात्मा और राजनेता
इस पावन अवसर पर जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य जी, परमहंस ज्ञानानंद जी महाराज, जगद्गुरु अनंताचार्य जी समेत अनेक महामंडलेश्वरों ने शिरकत की।
राजनीतिक जगत से राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा, केंद्रीय मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव समेत कई जनप्रतिनिधि भी आयोजन में शामिल हुए।
संदेश: सनातन धर्म अजेय, लेकिन सजग रहना आवश्यक
अपने उद्बोधन में धीरेन्द्र शास्त्री ने यह भी कहा:
“सनातन धर्म कभी खतरे में नहीं रहा, लेकिन उस पर बार-बार वैचारिक आक्रमण जरूर होते रहे हैं। अब समय है सजग रहने का।”
निष्कर्ष: राष्ट्र निर्माण की नई चेतना
यह आयोजन न केवल एक धार्मिक उत्सव था, बल्कि एक सामाजिक और राष्ट्रीय पुनर्जागरण का संकेतक भी बना। जात-पात, भेदभाव से ऊपर उठकर भारत को एक सनातन राष्ट्र के रूप में देखने की सोच यहां साकार होती दिखी।