धर्म और समाज के प्रति जागरूकता से तय होती है संस्कारधानी की दिशा और दशा


🖊️ राजू डागा, अध्यक्ष — संस्कारधानी सेवा संस्थान

राजनांदगांव।
धर्म और समाज के प्रति जागरूकता किसी भी नगर की आत्मा होती है। संस्कारधानी के नाम से पहचाने जाने वाले राजनांदगांव में यह आत्मा हर गली, हर आयोजन और हर व्यक्ति के आचरण में दिखाई देती है। यहां के नागरिक न केवल धार्मिक परंपराओं से जुड़े हैं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारियों को भी गंभीरता से निभाते हैं।

शहर के प्रमुख स्थल — शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय, शीतला मंदिर, गुरुद्वारा, राम मंदिर, मस्जिद, मकबरा, चर्च और मठ — केवल पूजास्थल नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता और बौद्धिक विमर्श के केंद्र भी हैं। यही वह विशेषता है, जो राजनांदगांव को अन्य शहरों से अलग बनाती है।

युवाओं की भूमिका अहम
आज जब देशभर में सामाजिक और सांस्कृतिक असंतुलन की बातें हो रही हैं, ऐसे समय में राजनांदगांव के युवाओं का धर्म और समाज के प्रति समर्पण सकारात्मक संकेत देता है। यदि युवा अपनी शक्ति और ऊर्जा को सही दिशा में लगाएं, तो अराजकता की आशंका स्वतः समाप्त हो जाएगी।

त्योहारों में दिखती है एकता
सावन का महीना, कांवड़ यात्राएं, मोहर्रम की ताजिएदार परंपरा, गणेश उत्सव की रंगीन झांकियां और नवरात्र की देवी आराधना — यह सब दर्शाते हैं कि राजनांदगांव की रगों में धर्म नहीं, धार्मिक एकता बह रही है। विभिन्न धर्मों, जातियों और संस्कृतियों के लोग यहां मिल-जुलकर पर्व मनाते हैं, यही शहर की असली पहचान है।

“संस्कारधानी” सिर्फ नाम नहीं, विचार है
छत्तीसगढ़ में जब भी कोई “संस्कारधानी” का उल्लेख करता है, तो सबसे पहले राजनांदगांव का नाम आता है। यह नगर केवल ईंट-पत्थरों का समूह नहीं, बल्कि एक ऐसा विचार है जो आस्था, जागरूकता और सामाजिक सौहार्द का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करता है।